नमस्कार दोस्तों स्वागत है आपका हमारे एक और नए आर्टिकल में आज के इस आर्टिकल के अंदर हम बात करने वाले सार्थक अंक के बारे में सार्थक अंक क्या होते हैं सार्थक अंक की परिभाषा क्या है और सार्थक अंक के प्रकारों के बारे में हम इस आर्टिकल में बात करेंगे आपको हम बड़ी आसान भाषा में समझाने का प्रयास करेंगे कि सार्थक अंक क्या है और हमारा पूरा प्रयास रहेगा कि हम उनके नियमों को बड़ेअच्छे तरीके से आपको समझाएं

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सार्थक अंक – किसी निश्चित माप की व्याख्या करने के लिए आवश्यक अंकों की संख्या को सार्थक अंक कहते हैं ।
किसी भौतिक राशि के मापन में सार्थक संख्या उन अंको की संख्या बताती है जिन पर हमें विश्वास होता है।
किसी भी मापन में जितने अधिक सार्थक अंक होंगे यथार्थता (सत्यता) भी उतनी ही अधिक होगी। (इसका विपरीत भी सत्य है)।
सार्थक अंकों की संख्या निर्धारण हेतु नियम नियम I : सभी अशून्य अंक सार्थक अंक है। उदाहरण 1984 में 4 सार्थक अंक है।
नियम II : दो अशून्य अंकों के मध्य स्थित सभी शून्य सार्थक अंक है। उदाहरण 10806 में 5 सार्थक अंक है।
नियम III : प्रथम अशून्य अंक के बायीं और स्थित सभी शून्य सार्थक अंक नहीं है। उदाहरण 00108 में 3 सार्थक अंक है। नियम IV: यदि कोई संख्या 1 से छोटी है तो दशमलव बिन्दु के दांयी ओर के शून्य जो प्रथम अशून्य अंक के बांयी ओर है सार्थक अंक नहीं होते हैं। उदाहरण 0.002308 में 4 सार्थक अंक है।
नियम V: किसी संख्या में जिसमें दशमलव बिन्दु हो, अनुगामी शून्य (अंतिम अशून्य अंक के दांयी ओर स्थित शून्य) सार्थक अंक होते हैं। उदाहरण 01.080 में 4 सार्थक अंक है।
नियम VI: किसी संख्या में दशमलव बिन्दु के बिना अनुगामी शून्य सार्थक अंक नहीं होते हैं परन्तु यदि संख्या किसी वास्तविक मापन से ज्ञात की गई है तब अनुगामी शून्य सार्थक अंक होते हैं। उदाहरण_m= 100 किग्रा में 3 सार्थक अंक है।
नियम VII: जब किसी संख्या को चरघातांकी रूप में प्रदर्शित किया जाता है तब चरघातांकी संख्या का सार्थक अंकों की संख्या पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। उदाहरण x = 12.3 = 1.23 × 101 = 123 x 102
= 0.0123 × 103 = 123 × 10-1 में प्रत्येक संख्या का सार्थक अंक 3 है ।
बीजगणितीय संक्रिया में सार्थक अंक निर्धारण हेतु नियम :
नियम I : संख्याओं के जोड़ने अथवा घटाने से प्राप्त अंतिम परिणाम में दशमलव के बाद उतने ही सार्थक अंक रखने चाहिए जितने कि जोड़ी या घटाई जाने वाली किसी राशि में दशमलव के बाद कम से कम हो।
उदाहरणार्थ 12.587-12.5 0.087= 0.1
(: दूसरी संख्या कम से कम अर्थात् एक दशमलव स्थान तक) नियम II : संख्याओं के गुणा अथवा भाग करने से प्राप्त परिणाम में केवल उतने ही सार्थक अंक रखने चाहिए जितने कि सबसे कम सार्थक अंकों वाली मूल संख्या में है। उदाहरणार्थ 5.0 X 0.125 = 0.625 = 0.62
महत्वपूर्ण बिन्दु
दशमलव बिन्दु रहित संख्याओं में अनुगामी शून्य से होने वाली परेशानी या संदेहों से बचने के लिए सही तरीका ये है कि प्रत्येक मापन को वैज्ञानिक तरीके (10 की घात में) से निरूपित किया जाए। इस पद्धति में प्रत्येक संख्या को a x 10b के रूप में लिखा जाता है जहाँ ‘a’ 1 और 10 के बीच की आधार संख्या है व b,
10 की कोई भी धनात्मक अथवा ऋणात्मक घात है। आधार संख्या a को प्रथम अंक के बाद दशमलव बिन्दु लगाकर दशमलव पद्धति में लिखा जाता है। जबकि सार्थक अंकों की संख्या निर्धारण में केवल आधार संख्या को ही प्रयुक्त किया जाता है (नियम VII)
किसी भी राशि के मापन में मात्रक में परिवर्तन करने से सार्थक अंकों की संख्या पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
उदाहरणार्थ 2.308cm = 23.08mm = 0.02308m = 23080 um 1 में प्रत्येक संख्या में सार्थक अंकों की संख्या 4 है।
निम्न में सार्थक अंकों की संख्या लिखिए ।
(a) 165 – 3 सार्थक अंक है (नियम I देखें)
(b) 2.05 – 3 सार्थक अंक (नियम I व II देखें)
(c) 34.000m – 5 सार्थक अंक (नियम I व V देखें)
(D) 0.005 – 1 सार्थक अंक (नियम I व IV देखें)
(e) 0.023400Nm – 4 सार्थक अंक (नियम I, IV व V देखें)
(f) 26900 – 3 सार्थक अंक (नियम VI देखें)
(g) 26900kg – 5 सार्थक अंक (नियम VI देखें)
निष्कर्ष
मुझे उम्मीद है कि आपको यह आर्टिकल पसंद आया होगा और हमने बहुत ही अच्छे तरीके से आपके साथ अंगों के बारे में समझाएं अगर आपको समझ में आ गया और आर्टिकल अच्छा लगा तो इसको अपने दोस्तों के साथ शेयर कीजिए और कुछ भी डाउट हो या किसी टॉपिक पर आर्टिकल चाहिए तो कमेंट सेक्शन में हमको बता दीजिए धन्यवाद